जब तक मानव को ठोकर नहीं लगती है तब तक मानव दूसरों के अनुभवों को नहीं मानता है। जी हां, यह सच है हमारे पूर्वज तो अपने पूर्वजों के अनुभवों को मान लेते थे और उसी के हिसाब से अपना जीवन चलाते थे। क्या करना है, कैसे करना है आदि। लेकिन नए जमाने का मानव तो अपने पूर्वजों को अनपढ़ समझता है। इसलिए ही उसने वह कार्य भी किया जिससे उसको कई प्रकार के नुकसान भुगतने पड़े है। वह ठोकर खाकर अब अपने पूर्वजों की बातों को ही मानने लगा है।
जैसे कि हमारे पूर्वजों ने बोला था कि स्वस्थ व दीर्घायु जीवन जीने के लिए शारीरक मेहनत बहुत जरूरी है तथा हमें अपनी क्षमता के हिसाब से शारीरिक मेहनत जरूर करना चाहिए। लेकिन हमने सब काम मशीनों से करवाना शुरू कर दिया और शारीरक काम करना बंद कर दिया। जिस कारण हमारे शरीर में खून का संचार कम होने लगा और कई प्रकार की बीमारियां घेरने लग गई। अंततः नए जमाने का मानव अपने पूवजों के अनुभवों के मानकर दोबारा शारीरिक मेहनत करने लग गया है। इसलिए ही कहा गया है कि जब तक ठोकर नहीं लगती तब तक मानव दूसरों का अनुभव नहीं लेता है।
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हमें अपने पूर्वजों द्वारा बताई हुई सब बातों को मानना चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं का सामना किया, उनका निवारण किया और अपने जीवन को सरलता से चलाया। उन्होंने हमे अपना अनुभव बताया ताकि हम भी वही कार्य करके अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का निवारण आसानी से कर सकें, उन समस्याओं से आसानी से बच सकें। इस प्रकार हमारा जीवन हमारे पूर्वजों के अनुभवों को मानने से सुखमय व सरलता से चलने लग जाता है।
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